कैसे पता?

 

कैसे पता?
मुल्ला नसरुद्दीन बाज़ार 
 में घूमते हुए एक दुकान में घुसे।
'आइए, खुशामदीद!" दुकान का मालिक पीछे से निकलकर आया,
"बताइए क्या खिदमत करूं?"
मुल्ला ने चकित होकर इधर-उधर देखा, फिर पूछा, मियां, "किसकी
खिदमत की बात कर रहे हो?"
"आपकी हुजूर, दुकानदार बोला, और किसकी?"
'अच्छा मेरी?" मुल्ला ने हैरत में पड़कर पूछा, "तो यह बताओ कि
तुमने क्या मुझे अपनी दुकान में आते देखा था?"
"जी, बिल्कुल देखा था।" दुकानदार भी समझ नहीं पाया कि ऐसी क्या
बात हुई। "आप अभी मेरी दुकान में तशरीफ लाए मेरे सामने।"
'क्या तुमने आज के पहले मुझे कभी देखा था, या मुझसे मिले थे?"
मुल्ला ने पूछा।
"जी नहीं, पहले तो आपसे मिलने का मौका कभी मिला नहीं।"दुकानदार
ने कहा।
"तो मियां, यह बताओ कि तुम कैसे कह सकते हो कि अभी जिसे तुमने
दुकान में आते देखा वो मैं ही था न कि कोई और ?" मुल्ला का सवाल था।

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